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Rules for implementation of RTI Act: Rajyasabha Q&A

GOVERNMENT OF INDIA
MINISTRY OF  PERSONNEL,PUBLIC GRIEVANCES AND PENSIONS
RAJYA SABHA

UNSTARRED QUESTION NO-179 by SHRI M.P. ACHUTHAN

(a) whether attention of Government has been drawn to the report that various high courts in the country have prescribed rules for implementation of RTI Act in violation of the parent Act, making the implementation of the new difficult; and

(b) if so, the details thereof and Government”s reaction thereto?

ANSWERED ON-09.08.2012 by

Minister of State in the Ministry of Personnel, Public Grievances and Pensions and Minister of State in the Prime Minister’s Office. (SHRI V. NARAYANASAMY)

(a) Sections 27 and 28 of the RTI Act, 2005 empower the appropriate Governments and the competent authorities respectively to make rules to carry out the provisions of the Act. State Governments and High Courts have prescribed their own rules under the above provisions.

(b) The 2nd Administrative Reforms Commission in its 1st report titled ‘Right to Information: Master Key to Good Governance’ had inter-alia recommended that States may be required to frame Rules regarding application fee which are in harmony with the Central Rules. It needs to be ensured that the fee itself does not become a disincentive. Accordingly, the Central Government vide its communication No. 1/5/2011-IR dated 26.04.2011 has requested the Chief Secretaries of all the States/UTs, where the Act is applicable, the Registrars of all the High Courts and the Registrar of the Supreme Court to review their Fee Rules and to prescribe fee in consonance with the fee prescribed by the Government of India.

*****
भारत सरकार
कार्मिक, लोक
शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय
(कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग)
*
*
*
राज्य
सभा
अतारांकित
प्र
श्‍न
संख्या
179
दिनांक 09.08.2012
को उत्तर के लिए
सूचना
का अधिकार अधिनियम के कार्यान्‍वयन हेतु नियम
179.    श्री
एम.पी. अच्‍युतन
 :
      क्या प्रधान मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे
कि
:
(क)   क्या सरकार का ध्‍यान इस रिपोर्ट की ओर दिलाया
गया है कि देश के विभिन्‍न उच्‍च न्‍यायालयों ने मूल अधिनियम के उल्‍लंघन में
सूचना का अधिकार अधिनियम के कार्यान्‍वयन हेतु नियम निर्धारित किए हैं जिससे नए का
कार्यान्‍वयन कठिन हो गया है
; और
(ख)   यदि हां, तो तत्‍संबंधी ब्‍यौरा क्‍या है और इस
पर सरकार की क्‍या प्रतिक्रिया है ?
उत्तर
कार्मिक, लोक
शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय
 में राज्य मंत्री तथा प्रधान मंत्री कार्यालय
में राज्य मंत्री    (श्री वे. नारायणसामी)
(क) : सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की
धाराएं 27 एवं 28 क्रमश
: उपयुक्‍त सरकारों और सक्षम
प्राधिकारियों को अधिनियम के प्रावधानों का कार्यान्‍वयन करने के लिए नियमों को
बनाने का अधिकार प्रदान करती है । उक्‍त प्रावधानों के तहत राज्‍य सरकारों और उच्‍च
न्‍यायालयों ने अपने स्‍वयं के नियम निर्धारित किए हैं ।
(ख)
:
द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने ‘राइट टू इन्‍फार्मेशन
:
मास्‍टर की टू गुड गवर्नेंस’ नामक अपनी प्रथम रिपोर्ट में अन्‍य बातों के साथ-साथ
यह संस्‍तुति की थी कि राज्‍यों को आवेदन शुल्‍क के संबंध में ऐसे नियमों को बनाने
की आवश्‍यकता पड़ सकती है जो केन्‍द्रीय नियमों के अनुरूप हों । यह सुनिश्चित करने
की आवश्‍यकता है कि शुल्‍क स्‍वयं हतोत्‍साहन न बन जाए । तदनुसार, केन्‍द्रीय
सरकार ने अपने दिनांक 26.04.2011 के पत्र सं. 1/5/2011-आईआर, के माध्‍यम से सभी
राज्‍यों/ संघ शासित प्रदेशों के मुख्‍य सचिवों से अनुरोध किया है कि जहां कहीं भी
अधिनियम मान्‍य हैं, वहां सभी उच्‍च न्‍यायालयों के रजिस्‍ट्रार तथा सर्वोच्‍च न्‍यायालय
के रजिस्‍ट्रार अपने शुल्‍क नियमों की समीक्षा करें तथा भारत सरकार द्वारा
निर्धारित शुल्‍क के अनुरूप शुल्‍क निर्धारित करें ।
* * * * *

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