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History of Pay Commissions & Demands from 7th CPC: Resolution (In Hindi) adopted in BMS Triennial Conference

 History of Pay Commissions & Demands from 7th CPC: Resolution (In Hindi) adopted in Bhartiya Mazdoor SanghTriennial Conference

Resolution adopted in BMS Triennial Conference regarding 07th CPC

प्रस्ताव क्रमांक 2

सातवाँ केन्द्रीय वेतन आयोग

भारत में पुरातन काल से ही श्रम को अत्यधिक महत्व दिया जाता रहा है तथा श्रम की महत्ता को ध्यान में रखने के कारण प्रचीन भारत में वेतन संबंधी विवाद न के बराबर थे।  रामायण व महाभारत के शांति पर्व में भृतति वेतन बोनल आदि के अनेक श्लोक हैं जो व्यवस्था के नियंत्रक मानक थे और राजा इनका पालन करते थे।  मध्यकालीन समय में श्रम के मूल्य को उत्पादित वस्तु के रूप में शादी ब्याह में सावनी व जड़ावर के रूप में राशि देकर औद्योगिक संबंधों को मधुर बनाये रखने की प्राचीन परम्परा रही है।  
मानवता की प्रगति के साथ इस व्यवस्था में परिवर्तन हुआ, अंग्रजों के शासनकाल में बढ़े शोषण के कारण कर्मचारी संगठित हुये, यूनियनें बनी वेतन सम्बन्धी अलग-अलग उद्योगो में अलग अवधारणायें बनी और उसी के अनुरूप वेतन दिया जाने लगा।
इतिहास यह बताता है कि आज लागू पेमेंट ऑफ वेजेज एक्ट 1936 के साथ साथ अन्य तमाम श्रम कानूनों की अवधारणा तथा कार्यान्वयन ब्रिटिश साम्राज्य में हुआ था।
देश छोड़ते समय ब्रिटिश साम्राज्य ने संगठित सरकारी कर्मचारियों के लिए, संभवत: एक तोहफे के रूप में 1646 में श्री श्रीनिवास वरदाचारियर के नेतृत्व में पहला केन्द्रीय वेतन आयोग गठित किया जिसने एक वर्ष में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।  पहले वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार, इसलिंग्टन कमीशन का लिविंग वेजेज का विचार था।  इस कमीशन ने पाया कि किस प्रकार से इसलिंग्टन कमीशन के लिविंग वेजेज विचार को वर्तमान में स्थितियों के अनुसार उदारतापूर्वक परिभाषित किया जाना चाहिए और एक कामगार व्यक्ति का वेतन किसी भी प्रकार से लिविंग वेजेज से कम नहीं होना चाहिए।  आयोग ने लिविंग वेजेज पर बल दिया और कहा कि सरकार जो कि न्यूनतम वेतन की अवधारणा को निजी क्षेत्र में लागू करने जा रही थी उसे अपने कर्मचारियों के लिए इसका पालन करना चाहिए।  आयोग ने यह भी सिफारिश भी की कि कर्मचारियों के सबसे नीचे तबके के व्यक्ति को कम से कम अपने जीवन यापन के लिए न्यूनतम मजदूरी वेतन मिलना ही चाहिए।

आजादी के 10 वर्षों के बाद, अगस्त 1957 में दूसरे वेतन आयोग का गठन हुआ और इसने अपनी रिपोर्ट दो वर्षों में दी, इस आयोग की सिफारिशों का भार 396 मिलियन रुपये का था।   इस केन्द्रीय वेतन आयोग के अध्यक्ष श्री जगन्नाथ दास थे।  दूसरे केन्द्रीय वेतन आयोग ने उन सिद्धान्तों का निर्धारण किया जिनके आधार पर किसी का वेतन तय हो सकता है।  इसने यह भी कहा कि वेतन संरचना तथा सरकारी कर्मचारी की कार्य स्थिति को इस प्रकार से जोड़ा जाना चाहिए ताकि न्यूनतम योग्यता वाले व्यक्तियों को भर्ती करके भी प्रभावशाली कार्य सुनिश्चित किया जा सके।
तीसरे वेतन आयोग का गठन अप्रैल 1970 में हुआ जिसने अपनी रिपोर्ट मार्च 1973 में दी।  इसकी सिफारिशों से सरकार पर 1.44 अरब रूपये का भार पड़ा।  इसके अध्यक्ष श्री रघुवीर दयाल जी थे।  इस वेतन अयोग ने ढ़ांचे में तीन महत्वपूर्ण अवधारणाओं समावेश, व्यापकता एवं प्रयाप्ता को मजबूती से शामिल करने पर बल दिया। तीसरे वेतन आयोग ने पहले वेतन आयोग की न्यूनतम वेतन की अवधारणा से बाहर निकल कर कार्य किया, इस वेतन आयोग की रिपोर्ट कहती है कि सच्ची परीक्षा यह है कि सरकार की सेवायें आकर्षक रहें, सरकार की आवश्यकता के लोग इसके साथ बने रहें और ये लोग मिलने वाले वेतन से संतुष्ट रहें।
चौथे वेतन आयोग का गठन 29 जुलाई 1983 को हुआ और इसने अपनी रिपोर्ट 4 वर्षों में, तीन चरणों में दी और इसे 1.1.1986 से लागू किया गया।  इस आयोग द्वारा न्यूनतम अनुशंसित वेतन 750 रुपये था।  इस वेतन आयोग ने इस बात की भी सिफारिश की कि कर्मचारियों के वेतन एवं भत्तों की समीक्षा के लिए एक स्थायी मशीनरी होनी चाहिए, परंतु यह कभी कार्यान्वित नहीं हो सका।
न्यायमूर्ति एस. रत्नवेल पाण्डियन की अध्यक्षता में 1994 में पांचवे वेतन आयोग का गठन हुआ, इस आयोग ने जनवरी 1997 में अपनी रिपोर्ट दी।  सरकार ने इसकी अधिकतर सिफारिशों को स्वीकार किया तथा जुलाई 1997 में इसके पैकेज को लागू करने की घोषणा की।  इस वेतन आयेाग की सिफारिशें 01.01.1996 से लागू हुईं।  इस वेतन अयोग ने न्यूनतम वेतन को 750 रुपये बढ़ाकर 2550 रुपये कर दिया।  इसने यह भी सुझाव दिया कि पे स्केल की संख्या 51 से घटाकर 34 कर दी जाए।  इसके सुझावों में यह भी था कि सरकारी कर्मचारियों की संख्या 30 प्रतिशत कम कर दी जाये।  इस आयोग ने यह भी सुझाव दिया कि वेतन बढ़ोतरी मंजूरी बिन्दु को, कर्मचारियों की संख्या में कमी, दक्षता तथा प्रशासनिक सुधार से जोड़ दिया जाए।
इसके बाद, देश में केन्द्रीय सरकारी कर्मचारियों का वेतन निर्धारण करने हेतु छठवें वेतन आयोग का गठन हुआ, इसे केन्द्र के साथ-साथ राज्य सरकारों ने 01.01.2006 से लागू किया।  वेतन तथा डीए के लिए इसका कार्यान्वयन 01.01.2006 से हुआ परन्तु अन्य भत्ते 01.09.2008 से लागू हुये।  तमाम फेडरेशनों ने इस वेतन आयोग द्वारा लागू की जा रही एम.ए.सी.पी. जैसी प्रतिकूल योजनाओं तथा सी.जी.इ.जी.आई.एस. लाभ बढ़ोत्तरी के लागू न होने के बारे में अपनी चिन्ता जताई।
भारतीय मजदूर संघ ने हमेशा से यह मांग रखी कि सरकार को स्थाई प्रकार की एक त्रिपक्षीय वेनत निर्धारण मशीनरी बनानी चाहिए जैसे कि निजी क्षेत्रों में तथा सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में है, ताकि वेतन कि प्रत्येक पाँच वर्षों में एक रूटीन कार्य की तरह संशोधित किया जा सके।
भारतीय मजदूर संघ के सतत दबाव के कारण भारत सरकार ने 25.09.2013 को सातवें केन्द्रीय वेनत आयोग के गठन की घोषणा की तथा 10 वर्षों की अवधि में संभावित रूप में इसे 01.01.2016 से लागू किया जाना है।  तथापि आज मुद्रास्फीति का स्तर, कर्मचारियों को वार्षिक रूप में प्रदान किये जाने वाले 3 प्रतिशत मंगाई की तुलना मे लगातार बहुत तेजी से बढ़ रहा है।  यहां तक कि डी.ए. 100 प्रतिशत के ऊपर पहूंच चुका है।
भारतीय मजदूर संघ के इस 17वें त्रैवार्षिक अधिवेशन में सर्वसम्मति से निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किया जाता है तथा भारत सरकार से यह मांग की जाती है कि निम्नलिखित मुद्दों पर तत्काल कार्यवाही की जाए अन्यथा भारतीय मजदूर संघ राष्ट्रव्यापी आन्दोलन कार्यक्रम चलायेगा –
  1. स्थायी प्रकार की एक त्रिपक्षीय वेतन निर्धारण मशीनरी बनायी जाए।
  2. शत प्रतिशत डी0ए0 50 प्रतिशत डी0ए0 01.01.2011 से तथा अगला 50 प्रतिशत डी0ए0 01.01.2014 सभी लाभ सहित, मूल वेतन के साथ जोड़ दिया जाए और सारे लाभ तत्काल प्रभार से दिये जाय।
  3. ऐसी घोषणा होने तक तथा सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट स्वीकार तथा लागू होने तक की स्थिति में प्रत्येक केन्द्रीय कर्मचारी को सात हजार रुपये प्रतिमाह की अंतरिम राहत प्रदान की जाए
  4. सभी प्रकार की विसंगतियों जैसे कि ग्रुप बीमा योजना लाभ में बढ़ोतरी, ए0सी0पी0/एम0ए0सी0पी0 मामले बिना देरी के हल किये जाएं।
  5. उद्योगों के प्रबन्ध तंत्र मे कामगारों की सहभागिता तथा बेहतर सामंजस्यपूर्ण रिश्ते को ध्यान में रखते हुए, भारत के संविधान के अनुच्छेद 43-ए के संदर्भ में Directive Principle of State Policy को ध्यान में रखकर Joint Consultation & Compulsory Arbitration (JCM Scheme) की वर्तमान प्रणाली की समीक्षा की जाए ताक‍ि नियोक्ता के रूप में सरकार तथा इसके कर्मचारियों में अधिकतम सहयोग सुनिश्चित किया जा सके तथा लोक सेवा में लगे कर्मचारियों की क्षमता को बढ़ाया जा सके।
  6. एक आदर्श नियोक्ता होने की बात सरकार को अपने मन में रखते हुए, सातवें वेतन आयोग द्वारा ठेका मजदूर को उनकी सत्यनिष्ठा, जिम्मेदारी तथा सेवा प्रदान करने की बात को ध्यान में रखते हुए तैनात करने की बात की जानी चाहिए।  तथा उन्हें स्थाई कर्मचारियों के समान वेतन तथा अन्य सुविधायें प्रदान किया जाना चाहिए।
  7. उच्च 5 केन्द्रीय श्रम संगठनों के एक-एक प्रतिनिधि, सातवें वेतन आयोग के सदस्य के रूप में होने चाहिए तथा यह भी मांग की जाती है कि सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट 01.06.2015 तक आ जानी चाहिए तथा उसकी जाँच समीक्षा आद‍ि के बाद में उसे 01.01.2016 से लागू किया जा सके।
  8. नई पेंशन स्कीम को रद्द करके कर्मचारियों को पूरा वेतन दिया जाय एवं पुरानी पंशन लागू की जाय।
  9. न्यूनतम तथा अधिकतम वेतन का अनुपात 1:10 किया जाये।
  10. वेतन निर्धारण में परिवार की परिभाषा बदनी जानी चाहिए तीन यूनिट परिवार के स्थान पर 6 यूनिट परिवार मानते हुए गणना की जानी चाहिए।  एक स्वंय एक पत्नी, दो बच्चे, माता एवं पिता का परिवार मानते हुए 6 यूनिट को परिवार माना जाए।
प्रस्तावक- साधू सिंह
समर्थक – एम.एम. देशपाण्डे
Source: http://bpms.org.in/documents/7thcpc-praposal-of-bms-4hst.pdf

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