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Corruption cases against top officials : Rajya Sabha Q&A

GOVERNMENT OF INDIA
MINISTRY OF PERSONNEL,PUBLIC GRIEVANCES AND PENSIONS
RAJYA SABHA
Corruption cases against top officials

UNSTARRED QUESTION NO-1318 by SHRI SHADI LAL BATRA

(a) the number of vigilance/corruption cases registered against the top bureaucrats during the last three years;
(b) the number of chargesheets filed against these bureaucrats during the said period;
(c) the number of permission pending with the respective Ministry/Departments; and
(d) the steps taken by Government in this regard?

ANSWERED ON-23.08.2012

ANSWER by Minister of State in the Ministry of Personnel, Public Grievances and Pensions and Minister of State in the Prime Minister’s Office. (SHRI V. NARAYANASAMY)

(a): As per the information provided by the Central Bureau of Investigation (CBI), it has registered 97 cases [71 Regular Cases (RCs) and 26 Preliminary Enquiries (PEs)] involving 129 officers of the rank of Joint Secretary and above during the last 3 years i.e. 2009, 2010, 2011 & 2012 (upto 31.7.2012). 15 officers are involved in more than one case

(b): As on 31.07.2012, out of the aforesaid 71 RCs, Chargesheets have been filed in 30 cases against 31 officers of the rank of Joint Secretary and above. 

(c): As on 31.7.2012 sanctions for prosecution are pending in 14 CBI cases with respective Central Ministries/Departments against 14 officers of the rank of Joint Secretary & above. 02 officers are common in 02 cases each. 

Further, permission under section 6A of the Delhi Special Police Establishment Act, 1946, for conducting enquiry/investigation, are pending in respect of 23 officers of the rank of Joint Secretary and above. 

(d): The Supreme Court of India, vide its judgment dated 18th December, 1997 in the case of Vineet Narain Vs. Union of India, directed that “time limit of three months for grant of sanction for prosecution must be strictly adhered to. However, additional time of one month may be allowed where consultation is required with the Attorney General (AG) or any Law Officer in the AG’s office”. 

It is sometime not possible to adhere to this time-limit. The delay which occurs in the sanctioning of prosecution is mostly on account of detailed scrutiny and analysis of voluminous case records and evidence, consultation with Central Vigilance Commission (CVC), State Governments and other agencies, and sometimes non-availability of relevant documentary evidence. 

However, in order to check delays in grant of sanction for prosecution, the Department of Personnel & Training has issued guidelines vide its OM No.399/33/2006-AVD-III dated 6th November, 2006 followed by another OM dated 20th December, 2006, providing for a definite time frame at each stage for handling of requests from CBI for prosecution of public servants. 

The Group of Ministers on tackling corruption, in its First Report, had also given certain recommendations for speedy disposal of sanction of prosecution cases, which included-taking decision on such cases within 3 months; monitoring of such cases at the level of Secretary of the Ministry/ Department and submission of report to the Cabinet Secretary; and in cases of refusal to accord sanction, submission of a report to the next higher authority within 7 days for information (where competent authority is Minister such report is to be submitted to the Prime Minister). The said recommendation of the GoM has been accepted by Government and instructions have been issued by the Government on 03.05.2012. 

As regards permission under section 6A of the Delhi Special Police Establishment Act, 1946, the Group of Ministers on tackling corruption in its First Report has recommended that the competent authority shall decide the matter within three months with speaking orders and in the event a decision is taken to refuse permission the reasons thereof shall be submitted to the next higher authority within one week for information (where competent authority is Minister, such report is to be submitted to the Prime Minister). This recommendation was accepted by the Government and instructions issued on 26.09.2011.

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भारत सरकार
कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय 
(कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग)
राज्य सभा

अतारांकित प्रश्‍न संख्या :1318
दिनांक 23.08.2012 को उत्तर के लिए)

शीर्ष अधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के मामले

1318. श्री शादी लाल बत्रा :
क्या प्रधान मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि :

(क) विगत तीन वर्षों के दौरान शीर्ष नौकरशाहों के विरुद्ध सतर्कता/भ्रष्टाचार से जुड़े कितने मामले दर्ज हुए;
(ख) उक्त अवधि के दौरान इन नौकरशाहों के विरुद्ध कितने आरोपपत्र दाखिल किए गए;
(ग) संबंधित मंत्रालयों/विभागों के पास कितनी अनुमति लंबित है; और
(घ) इस संबंध में सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं ?
उत्तर

कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय में राज्य मंत्री तथा प्रधान मंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री (श्री वे. नारायणसामी)

(क) : केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो द्वारा मुहैया कराई गई सूचना के अनुसार, इसने पिछले तीन वर्षों अर्थात 2009, 2010, 2011 और 2012 (31.07.2012 तक) के दौरान संयुक्‍त सचिव स्‍तर और इससे ऊपर के रैंक के 129 अधिकारियों से जुड़े 97 मामले [71 नियमित मामले (आरसी) और 26 प्रारंभिक जांच (पीई)] दर्ज किए हैं । 15 अधिकारी एक से अधिक मामले में शामिल हैं ।  
(ख) : दिनांक 31.07.2012 तक की स्थिति के अनुसार, उपर्युक्‍त 71 आरसी में से संयुक्‍त सचिव और ऊपर के रैंक के 31 अधिकारियों के विरूद्ध 30 मामलों में आरोप पत्र दायर किए गए हैं ।  
(ग) : दिनांक 31.07.2012 तक की स्थिति के अनुसार, संयुक्‍त सचिव और उापर के रैंक के 14 अधिकारियों के विरूद्ध सीबीआई के 14 मामलों में संबंधित मंत्रालयों/विभागों में अभियोजन हेतु संस्‍वीकृति लंबित है । 02 अधिकारी 02 मामलों में लिप्‍त हैं । 
इसके अतिरिक्‍त, संयुक्‍त सचिव और ऊपर के स्‍तर के 23 अधिकारियों के संबंध में दिल्‍ली विशेष पुलिस स्‍थापना अधिनियम, 1946 की धारा 6ए के तहत जांच/अन्‍वेषण हेतु अनुमति प्राप्‍त नहीं हुई है । 
(घ) : उच्‍चतम न्‍यायालय ने विनीत नारायण बनाम भारत संघ के मामले में दिनांक 18 दिसंबर, 1997 के निर्णय में निदेश दिया कि ‘’अभियोजन की संस्‍वीकृति हेतु तीन महीने की समय-सीमा का कड़ाई से अनुपालन किया जाए । तथापि, जहां अटॉर्नी जनरल (एजी) अथवा एजी कार्यालय में किसी भी कानून अधिकारी के साथ परामर्श आवश्‍यक है, एक महीने का अतिरिक्‍त समय दिया जाए ।‘’  
कभी-कभी इस समय-सीमा का अनुपालन करना संभव नहीं हो पाता है । अभियोजन की संस्‍वीकृति में होने वाला विलंब अधिकतर इन कारणों से होता है — मामले के भारी-भरकम रिकार्ड और साक्ष्‍य की विस्‍तृत जांच तथा विश्‍लेषण, केन्‍द्रीय सतर्कता आयोग, राज्‍य सरकारों एवं अन्‍य एजेंसियों से परामर्श और सुसंगत दस्‍तावेजी साक्ष्‍य की अनुपलब्‍धता ।  
तथापि, अभियोजन की संस्‍वीकृति को मंजूरी करने में होने वाले विलंब को रोकने के उद्देश्‍य से कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने अपने कार्याल्‍य ज्ञापन संख्‍या 399/33/2006-एवीडी-।।। दिनांक 6 नवंबर, 2006 और इसके बाद कार्यालय ज्ञापन दिनांक 20 दिसंबर, 2006 द्वारा दिश-निर्देश जारी किए हैं जिनमें लोक सेवकों के अभियोजन हेतु केन्‍द्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो से प्राप्‍त अनुरोधों पर कार्रवाई करने हेतु प्रत्‍येक चरण में एक निश्चित समय-सीमा की व्‍यवस्‍था है ।  
भ्रष्‍टाचार से निपटने से संबधित गठित मंत्री समूह ने अपनी पहली रिपोर्ट में, मामलों के अभियेाजन की संस्‍वीकृति के त्‍वरित निपटान हेतु कतिपय सिफारिशें भी की थीं जिनमें शामिल हैं — ऐसे मामलों पर 3 महीने के अंदर निर्णय लेना; ऐसे मामलों की मंत्रालय/विभाग के सचिव स्‍तर पर मॉनीटरिंग करना और मंत्रिमण्‍डल सचिव को रिपोर्ट प्रस्‍तुत करना; और संस्‍वीकृति प्रदान करने से मना करने के मामलों में, अगले उच्‍चतर प्राधिकारी को 7 दिनों के अंदर रिपोर्ट सूचनार्थ प्रस्‍तुत करना (जहां सक्षम प्राधिकारी यदि मंत्री हो तो ऐसी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को प्रस्‍तुत की जाए) । मंत्री दल की उक्‍त सिफारिश को सरकार ने स्‍वीकार कर लिया है और सरकार द्वारा दिनांक 03.05.2012 को अनुदेश जारी कर दिए गए हैं ।  
जहां तक दिल्‍ली विशेष पुलिस स्‍थापना अधिनियम, 1946 की धारा 6ए के तहत अनुमति का संबंध है, भ्रष्‍टाचार से निपटने से संबंधित मंत्री समूह ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि सक्षम प्राधिकारी मामले पर तीन महीने के अंदर स्‍पष्‍ट निर्णय देगा और यदि अनुमति देने से मना करने का निर्णय दिया जाता है तो इसके कारण एक सप्‍ताह के अंदर अगले उच्‍चतर प्राधिकारी को सूचनार्थ प्रस्‍तुत किए जाएंगे (जहां सक्षम प्राधिकारी यदि मंत्री है, तो ऐसी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को प्रस्‍तुत की जाए) । इस सिफारिश को सरकार ने स्‍वीकार कर लिया था और दिनांक 26.09.2011 को अनुदेश जारी कर दिए गए । 
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