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सातवां वेतन आयोग : आसान नहीं सरकार की राह

सातवां वेतन आयोग : आसान नहीं सरकार की राह

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जस्टिस एके माथुर की अध्यक्षता वाले सातवें वेतन आयोग ने वित्त मंत्री अरुण जेटली को अपनी 900 पन्नों वाली रिपोर्ट सौंप दी है. सातवें वेतन आयोग का यूपीए सरकार ने फरवरी 2014 में गठन किया था. आयोग को 18 महीने में रिपोर्ट सौंपनी थी, लेकिन वह निर्धारित समय में अपनी रिपोर्ट तैयार नहीं कर पाया, इसके बाद उसे चार महीने का समय और दिया गया था. आयोग ने  केंद्रीय कर्मचारियों और अधिकारियों की बेसिक सेलरी में 14.27 प्रतिशत, वेतन में 16 प्रतिशत, भत्तों में कुल 63 प्रतिशत, पेंशन में 24 प्रतिशत और औसतन 23.55 प्रतिशत इज़ाफे की अनुशंसा की है. सातवें वेतन आयोग की अनुसंशायें 1 जनवरी, 2016 से लागू होंगी. इसका फायदा 47 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और 52 लाख पेंशन धारकों को होगा. इन अनुशंसाओं के लागू होने के बाद सरकारी खजाने पर सालाना 1.02 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. 1.02 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त खर्च में से 74 हजार करोड़ रुपये केन्द्रीय बजट से उपलब्ध कराया जाएगा, जबकि शेष 28 हजार करोड़ रुपए रेल बजट से खर्च किए जाएंगे. यह राशि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.65 प्रतिशत होगी, छठवें वेतन आयोग की सिफारिशों में यह वृद्धि जीडीपी का 0.7 प्रतिशत थी. आयोग ने सैलरी में प्रतिवर्ष 3 प्रतिशत वृद्धि करने की अनुशंसा की है.

सातवें वित्त आयोग की अनुशंसाओं को लागू करने से देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन बढ़ने से बाजार में तरलता में वृद्धि होगी, जिससे महंगाई में बढ़ोत्तरी होगी. जिस तरह छठवें वेतन आयोग की अनुशंसाओं के लागू होने के बाद दोपहिया-चारपहिया वाहनों और कंज्यूमर गुड्स की बिक्री में इजाफा हुआ था, कुछ वैसा ऐसा ही कुछ सातवें वेतन आयोग की अनुशंसाओं को लागू करने के बाद होगा. अंदाजा लगाया जा रहा है कि दुपहिया वाहनों की मांग में 2 से तीन प्रतिशत और चारपहिया वाहनों की बिक्री में 5 से 7 प्रतिशत की वृद्धि होगी. सरकार के ऊपर पहले से ही फिस्कल डेफीसिट को कम करने का दबाव है, ऐसे में पहले सेना में वन रैंक, वन पेंशन को लागू करने के बाद दबाव बढ़ा है. इसके बाद सातवें वेतन आयोग की अनुशंसाओं को लागू करने से सरकार के लिए राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम(एफआरबीएम) द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पूरा कर पाना आसान नहीं होगा, ऐसे ही सरकार ने इस वित्त वर्ष सेवा कर को पहले 12.36 से बढ़ाकर 14 प्रतिशत किया, इसके बाद इसमें 0.5 प्रतिशत स्वच्छ भारत सेस लागू कर दिया है. जो बात अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में कही थी कि राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2015-16 में जीडीपी का 3.9 प्रतिशत, 2016-17 में 3.5 प्रतिशत और 2017-18 में तीन प्रतिशत रहेगा, लेकिन सातवें वेतनमान की अनुशंसाओं के लागू होने के बाद सरकार इस लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएगी. वर्तमान में राजकोषीय घाटा 4.1 प्रतिशत है. ऐसे में सरकार के पास केवल चार रास्ते हैं. पहला वह कर में वृद्धि करे, दूसरा, अपने खर्च में कटौती करे और तीसरा, कर्ज ले या एफडीआई के लिए रास्ता खोले. एनडीए सरकार के 18 महीने के कार्यकाल में कई बार यात्री किराये और माल भाड़े में वृद्घि हो चुकी है, सबसे ज्यादा केंद्रीय कर्मचारी रेलवे में कार्यरत हैं, ऐसे में रेल बजट पर पड़ने वाला 28 हजार करोड़ रुपये के अतिरिक्त बोझ की पूर्ति सरकार के लिए कर पाना एक बड़ी चुनौती होगी. किराए और माल भाड़े में वृद्धि करके सरकार यात्रियों के लिए किसी तरह की सुविधाओं का इज़ाफा नहीं कर पाएगी. ऐसे में रेलवे में एफडीआई लाना ही उसके पास एकमात्र और अंतिम रास्ता बचता है जिसे वह अपनाएंगे. ऐसे भी अपनी सिंगापुर यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने रेलवे में एफडीआई के संकेत दे चुके हैं.

आयोग ने कर्मचारियों की न्यूनतम तनख्वाह को 7 हजार से बढ़ाकर 18 हजार रुपये कर दिया है. जबकि सचिव स्तर के अधिकारियों की तनख्वाह को 80 हजार से बढ़ाकर लगभग सवा दो लाख कर दिया गया है. इसके अलावा सैलरी में प्रतिवर्ष 3 प्रतिशत की वृद्घि करने की अनुशंसा की गई है. लेकिन छोटे कर्मचारी इससे संतुष्ट नहीं हैं. कर्मचारी संगठनों का आरोप है कि सातवें वेतनमान आयोग की रिपोर्ट में केवल अधिकारियों की तनख्वाह में बड़ा इजाफा किया गया है जबकि कर्मचारियों की तनख्वाह में मामूली. इस रिपोर्ट की अनुशंसाओं के लागू होने के बाद कर्मचारियों और अधिकारियों के वेतन का अनुपात 1:12 हो जाएगा. हालांकि न्यूनतम वेतन 18 हजार रुपये कर दिया गया है, जबकि कर्मचारी इसे 26 हजार रुपये करने की मांग कर रहे थे. आयोग ने कर्मचारियों का परफॉर्मेंस रिलेटेड पे(पीआरपी) लागू करने का प्रस्ताव दिया है. आयोग का मानना है कि सरकार को पीआरपी को एक विश्र्वसनीय ढांचा प्रदान करना चाहिए. ताकी सभी मंत्रालयों और विभागों के कर्मचारी बेहतरीन परफॉर्मेंस दें. पर ये भी सिफारिश की है कि 20 साल सही परफॉर्म नहीं करने वाले का इंक्रीमेंट रोक दें. दो वजहें हैं. पहली- जब भी कोई नौकरी ज्वाइन करता है तो कुछ साल प्रोबेशन पर रहता है. उसी के बाद वास्तविक जिम्मेदारी शुरू होती है. दूसरी- उसे परफॉर्मेंस दिखाने का पर्याप्त समय मिले, ताकि वह कोई बहाना न बना सके.

केंद्रीय कर्मचारियों की तनख्वाह के बढ़ने से कंज्यूमर प्राइज इंडेक्स में 6 से 6.5 प्रतिशत की वृद्धि होगी. जिसका महंगाई से सीधा वास्ता है. यदि मांग और आपूर्ति के बीच सही संतुलन नहीं बनाया गया तो महंगाई के रूप में जनता को खामियाजा भुगतना पड़ेगा. हालांकि औद्योगिक विकास दर इससे जरूर बढ़ेगी लेकिन इसका फायदा जनता को नहीं, उद्योगपतियों को होगा. आयोग ने सभी केंद्रीय कर्मचारियों के लिए वन रैंक-वन पेंशन देने, ग्रेच्युटी की सीमा 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख रुपये करने, वेतन निर्धारण के लिए ग्रेड पे और पे बैंड की व्यवस्था खत्म करने, पैरा मिलेट्री फोर्सेज को भी शहीद का दर्जा देने, सैन्य सेवाओं के कर्मचारियों की तनख्वाह दोगनी करने (केवल सेना पर लागू होगा) जैसी अनुशंसा की है. साथ ही केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों का सेवाकाल अधिकतम 33 साल तय किए जाने की अनुशंसा भी की है. इसका मतलब यह होगा कि यदि कोई कर्मचारी 21 साल की उम्र में नौकरी शुरू करता है तो वह 53 साल की उम्र में सेवानिवृत्त हो जाएगा. बाकी कर्मचारियों के लिए सेवानिवृत्त की आयु 60 साल ही रहेगी. इस तरह की अनुशंसाओं का भी कर्मचारी विरोध कर रहे हैं.
हालांकि सरकार आयोग की कितनी अनुशंसाओं को लागू करती है यह देखना बेहद दिलचस्प होगा. इसके अलावा सरकार अपने आय और व्यय में किस तरह संतुलन लाएगी यह फरवरी में आने वाले बजट में दिखाई पड़ जाएगा.

महत्वपूर्ण अनुशंसाएं

1. बेसिक सैलरी में 16 प्रतिशत की बढ़ोतरी.
2. न्यूनतम वेतन 18, 000 हजार रुपये हो जाएगा.
3. भत्तों में 63 फीसद की बढ़ोतरी होने के साथ ही पेंशन में 24 फीसद बढ़ोतरी.
4. सातवें वेतन आयोग के लागू होने के बाद सरकार पर एक लाख दो हजार करोड़ का बोझ बढ़ेगा.
5. सातवें वेतन आयोग के तहत की गई ये बढ़ोतरी 1 जनवरी 2016 से लागू होगी.
6. पैरामिलिट्री फोर्सेज के जवानों को भी मिलेगा शहीद का दर्जा.
7. सैलरी में प्रतिवर्ष 3 प्रतिशत वृद्धि की अनुशंसा.
8. फायदा 47 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और 52 लाख पेंशन धारकों को होगा.
9. पे-बैंड और ग्रेड-पे की प्रणाली को खत्म करने की सिफारिश.
10. सभी केंद्रीय कर्मचारियों के लिए वन रैंक, वन पेंशन लागू करने की सिफारिश.
11. शॉर्ट सर्विस कमीशन के कर्मचारियों को 7 से 10 साल के बीच नौकरी छोड़ने की अनुमति होगी.



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